तू सही मैं गलत , मैं सही तू गलत
बस इसी में उलझी रही हमारे प्यार की कसमकस।
टूट कर चाहा मैंने तुझे , प्यार माँगा तो , गलत मैं था।
छुपा कर रखना चाहती थी तुम हमारा रिस्ता ,
मैंने उजागर करने को कहा तो ,गलत मैं था।
भरोसा हर दफा तुमने मेरा तोडा ,
मैंने सच बोलने को कहा तो , गलत मैं था ।
भुला कर अपना आशियाना , मैंने तेरा आशियाना सजाया।
बारी जब मेरे आशियाने की हुई तो ,गलत मैं था।
तेरी हर ख़ुशी में जश्न मैंने मनाया ,
बारी जब मेरे जश्न की आई तो , गलत मैं था।
तुम आज़ाद होना चाहती थी बंदिशों से , तुम्हे खुद में कैद करना चाहा तो गलत मैं था।
छोड़ कर जाना तुम चाहती थी , मैंने समझाना चाहा तो , गलत मैं था।
मुड़ कर भी नहीं देखा एक दफा तुमने , मैंने रोकना चाहा तो गलत मैं था।
अब हक़ीक़त से मुझसे तुम कोशो दूर हो ,और सपनो में भी तुम मुँह फेर लेती हो।
बेशक तू खुस होगी उसके साथ ,
लेकिन तेरे रहने का अहसास मुझे आज भी है।
काश तुझसे ये कह पता मैं , तेरी यादें आकर जख्म को ताज़ा कर देती है
और मुझे ऐसी यादें अक्सर आती रहती है
आज फिर तेरी यादों ने घेरा है मुझे
अफ़सोस भी है अपनी गलती का
और दर्द भी है , तेरे चले जाने का।
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